भारत में मसालों की खेती का बहुत ज्यादा चर्चा में है और जायफल (Nutmeg) एक डेली यूज़ होने वाला मसाला फसल है। जायफल का यूज़ मसाले के रूप में, औषधीय गुणों के लिए और सुगंधित तेल निकालने के लिए किया जाता है। इसकी खेती किसानों के लिए एक बेनिफिट बिज़नेस साबित हो सकती है। यह आर्टिकल में हम जायफल की खेती से जुड़ी संपूर्ण जानकारी, लागत, मुनाफा, जलवायु, देखभाल और बाजार संभावनाओं पर चर्चा करेंगे।
जायफल की पहचान और युज
जायफल (Myristica fragrans) एक सदाबहार वृक्ष है जिसकी उत्पत्ति इंडोनेशिया के मालुकू द्वीपों में हुई थी। यह एक उष्णकटिबंधीय पौधा है जो गर्म और आर्द्र जलवायु में पनपता है। इसके बीज को जायफल कहा जाता है और उसके चारों ओर के लाल आवरण को जावित्री कहा जाता है
जायफल का युज भारतीय अरबी और पश्चिमी व्यंजनों में मसाले के रूप में किया जाता है।
यह पाचन तंत्र को दुरुस्त करता है दर्द निवारक होता है और शरीर को ऊर्जावान बनाता है।
परफ्यूम, साबुन और तेलों में जायफल का युज किया जाता है।
आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सा में इसका जायफल को बहुत ज्यादा युज किया जाता है।
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जायफल की खेती के लिए जलवायु और माटी
जायफल की खेती के लिए गर्म और आर्द्र जलवायु की जरूरत होती है।
औसत तापमान 25-35 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए।
1500-3000 मिमी वार्षिक वर्षा आवश्यक की जरूरत होती है।
समुद्र तल से 500-700 मीटर ऊँचाई वाले क्षेत्र इसके लिए उत्तम होते हैं।
गहरी, उपजाऊ, दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है।
pH मान 5.5-7 के बीच होना चाहिए।
अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी जरूरी होता है।
जायफल की खेती कैसे की जाती है?
जायफल के बीजों को 24 घंटे तक पानी में भिगोकर रखना चाहिए।
2-3 महीने में जब बीज अंकुरित हो जाते हैं, तो इन्हें पॉलिथीन बैग में रोपित किया जाता है।
6-12 महीने की नर्सरी पौधों को खेत में रोपा जाता है।
रोपण के लिए 7×7 मीटर की दूरी पर गड्ढे तैयार किए जाते हैं।
गर्मी के मौसम में 10-15 दिनों में एक बार सिंचाई करनी चाहिए।
वर्षा ऋतु में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती।
खरपतवार नियंत्रण के लिए समय-समय पर निराई-गुड़ाई करनी चाहिए।
प्राकृतिक खाद: 20-25 किलो गोबर खाद प्रति पौधा सालाना दें।
नाइट्रोजन (200 ग्राम प्रति पौधा)
फास्फोरस (100 ग्राम प्रति पौधा)
पोटाश (150 ग्राम प्रति पौधा)
जैविक खेती के लिए वर्मीकम्पोस्ट और जैव उर्वरक का उपयोग करें।
गुणकारी तेल और नीम का छिड़काव कीट नियंत्रण में मदद करता है।
फफूंद जनित रोगों के लिए तांबे के कवकनाशी (कॉपर फंगीसाइड) का छिड़काव करें।
जायफल खेती की कटाई और उत्पादन
जायफल का वृक्ष 8-10 वर्षों में फल देना शुरू करता है।
पूर्ण उत्पादन 20-25 वर्षों तक जारी रहता है।
प्रति वृक्ष 2-3 किलोग्राम जायफल उत्पादन होता है।
1 हेक्टेयर भूमि में 400-500 पौधे लगाए जा सकते हैं।
जायफल का लागत और मुनाफा
लागत का अनुमान
खर्च का प्रकार | अनुमानित लागत (प्रति हेक्टेयर) |
---|---|
नर्सरी और पौधों की लागत | ₹50,000 – ₹80,000 |
खाद और उर्वरक | ₹20,000 – ₹30,000 |
सिंचाई और देखभाल | ₹15,000 – ₹25,000 |
मजदूरी और अन्य खर्चे | ₹30,000 – ₹50,000 |
कुल लागत | ₹1,20,000 – ₹1,80,000 |
इतना लागत में इस प्रकार मुनाफा हो सकता है
उत्पाद | औसत उत्पादन | बाजार मूल्य (प्रति किलो) | कुल आय |
जायफल | 800-1000 किग्रा | ₹800-₹1000 | ₹8,00,000 – ₹10,00,000 |
जावित्री | 100-150 किग्रा | ₹1500-₹2000 | ₹1,50,000 – ₹3,00,000 |
कुल मुनाफा | ₹9,50,000 – ₹13,00,000 |
जायफल की मार्केटिंग और व्यापार
भारत में जायफल की मांग घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में काफी अधिक है।
जायफल का निर्यात अमेरिका, यूरोप, मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में होता है।
किसानों के लिए प्रोसेसिंग यूनिट और मूल्य संवर्धन से अधिक मुनाफा कमाने की संभावनाएँ हैं।
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